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जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण उच्चकोटि की योगसाधिका, मधुर उपदेष्टा एवं चिन्तनशीला साध्वी हैं। रत्नवंश की प्रमुखा साध्वी श्री सरदारकुंवर जी, श्री मैनासुन्दरी जी अपनी ओजस्वी प्रवचनशैली और स्पष्ट विचारधारा के लिये प्रसिद्ध थीं। श्री उम्मेदकंवर जी उत्कृष्ट, त्यागी तपस्विनी आदर्श श्रमणी हैं। इसी परम्परा की और भी कई साध्वियाँ विदुषी डॉक्टरेट व शासन प्रभाविका हैं। ___ मेवाड़ परम्परा में श्री नगीनाजी शास्त्रचर्चा में निपुण महासाध्वी हुईं। इनकी चन्दूजी, इन्द्राजी, कस्तूरां जी, श्री वरदूजी आदि कई शिष्याएँ महातपस्विनी और उग्र अभिग्रहधारी थी। श्री श्रृंगारकुंवर जी निर्भीक स्पष्टवक्ता और समयज्ञा साध्वी थीं। आचार्य श्री एकलिंगदास जी महाराज के पश्चात् मेवाड़ की विश्रृंखलित कड़ियों को इन्होंने ही टूटने से बचाया। श्री प्रेमवती जी राजस्थान सिंहनी के नाम से विख्यात साध्वी थीं, अहिंसा के क्षेत्र में इनका योगदान सराहनीय था।
क्रियोद्धारक श्री हरजी ऋषि जी की परम्परा में मुख्य रूप से तीन शाखाएँ विद्यमान हैं, उन्हें कोटा सम्प्रदाय, साधुमार्गी सम्प्रदाय और दिवाकर सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है। यद्यपि श्री हरजीऋषि जी के क्रियोद्धार का काल संवत् 1686 के आसपास का है,
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