Book Title: Jain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण कई मासोपवासी उग्र तपस्विनी आगमज्ञाता साध्वियों में श्री निरूपमाजी हैं, जो बत्तीस शास्त्रों को कंठस्थ कर महावीर युग की प्रत्यक्ष झलक दिखा रही है। गोंडल सम्प्रदाय में श्री मीठीबाई घोर तपस्विनी महाश्रमणी थी । वर्तमान में प्राणकुंवरबाई, मुक्ताबाई, तरूलताबाई, लीलमबाई, प्रभाबाई, हीराबाई विशाल श्रमणी संघ की संवाहिका आगमज्ञा साध्वियाँ हैं । बरवाला सम्प्रदाय में जवेरीबाई उग्र तपस्विनी साध्वी थी। बोटाद सम्प्रदाय में चम्पाबाई, मंजुलाबाई, कच्छ आठ कोटि मोटा संघ में श्री मीठीबाई, श्री जेतबाई, कच्छ नानीपक्ष में देवकुंवरबाई आदि दृढ़ संयम निष्ठ आत्मार्थिनी श्रमणियाँ हुई। वर्तमान में धर्मदास जी महाराज की गुजरात परम्परा में 726 के लगभग श्रमणियाँ विद्यमान हैं। मालव परम्परा में भी संवत् 1718 से साध्वियों का इतिहास उपलब्ध होता है, जिनके नाम श्री लाडूजी डायाजी आदि हैं। संवत् 1940 में श्री मेनकंवर जी परम वैराग्यवान प्रखर प्रतिभा सम्पन्न साध्वी हुई थीं, उन्होंने भारत के वायसराय एवं सैलाना नरेश आदि राजाओं को अपने प्रवचनों से प्रभावित कर राज्य में अमारि की घोषणा करवाई थी। श्री हीराजी, दौलाजी, प्रवर्तिनी श्री माणककंवर जी प्रवर्तिनी श्री महताबकंवर जी, Jain Education International 25 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54