Book Title: Jain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 39
________________ जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण सौम्य, वाणी वर्तन में एकरूप और अविरत स्वाध्यायशीला थी। श्री हीराबाई मधुरकंठी तपस्विनी प्रभावका प्रवचनकी थी। श्री वसुमती बाई प्रतिभावंत साध्वी थी। इनके तलस्पर्शी, विचार सभर गम्भीर आशय वाले प्रवचनों की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। बम्बई में एक बार 51 जोड़ों ने इनसे ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया था। दरियापुरी सम्प्रदाय की वर्तमान 112 साध्वियाँ हैं। अपने शोध-ग्रंथ में हमने संवत् 1961 से संवत् 2060 तक की 163 श्रमणियों के परिचय और योगदान का उल्लेख किया है। ___क्रियोद्धारक श्री धर्मदास जी महाराज की परम्परा गुजरात, मालवा, मारवाड़, मेवाड़ आदि भारत के प्रायः सभी देशों में विस्तार को प्राप्त हुई हैं। गुजरातपरम्परा की श्रमणियों का इतिवृत्त संवत् 1718 से उपलब्ध होता है। यह परम्परा गुजरात, सौराष्ट्र, कच्छ में अनेक शाखाओं में विभक्त हुई। लिंबडी अजरामर सम्प्रदाय में बहुश्रुता एवं शत शिष्याओं की प्रमुखा श्री वेलबाई स्वामी श्री उज्ज्वल कुमारी जी आदि हुई। लिंबड़ी गोपाल सम्प्रदाय में सौराष्ट्र सिंहनी श्री लीलावती बाई 145 साध्वियों की कुशल संचालिका थी, इनके प्रवचनों की 'तेतलीपुत्र' आदि कई पुस्तकें हैं। इनकी 24 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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