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जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण .
पंजाब श्रमणी संघ की प्रथम प्रवर्तिनी श्री पार्वती जी महाराज हिन्दी साहित्य की प्रथम जैन साध्वी लेखिका हुई हैं। अनेक अन्य मतानुयायी पंडित उनसे शास्त्रार्थ कर धर्म के सत्य सिद्धान्तों पर आस्थावान बने थे। श्री चंदाजी महाराज, श्री द्रौपदांजी महाराज, श्री मथुरादेवी जी महाराज, श्री मोहनदेवी जी महाराज प्रभावशाली प्रवचनकर्ती थीं, उन्होंने समाज की अनेक कुरीतियाँ बंद करवाकर स्थान-स्थान पर धार्मिक सत्संग प्रारम्भ करवाये थे। प्रवर्तिनी श्री राजमती जी, श्री पन्नादेवी जी (टुहाना वाले) हमारी गुरुणीजी महाश्रमणी श्री कौशल्यादेवी जी आदि परम सहिष्णु, समता की साक्षात् मूर्ति, आत्मनिष्ठ श्रमणियाँ थीं। श्री मोहनमाला जी, श्री शुभ जी, श्री हेमकंवर जी ने क्रमशः 311, 265 और 251 दिन सर्वथा निराहार रहकर विश्व में जैन श्रमण संस्कृति का गौरव निनाद किया। इनके अतिरिक्त कंठ कोकिला श्री सीता जी, परम शुचिमना श्री पन्नादेवी जी, वात्सल्यनिधि श्री कौशल्या जी 'श्रमणी', दृढ़ संयमी श्री मगनश्री जी, सर्वदा ऊर्जस्वित व्यक्तित्त्व कृतित्व संपन्ना श्री स्वर्णकान्ता जी, गद्य-पद्य में समान कलम की धनी श्री हुक्मदेवी जी, अध्यात्मनिष्ठ श्री सुन्दरी जी, प्रबल स्मृति धारिणी, सुदूर विहारिणी
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