Book Title: Jain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 36
________________ जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण श्रमणियाँ हमारे शोध प्रबन्ध में निबद्ध हुई हैं। ऋषि पम्प्रदाय की एक शाखा गुजरात में 'खम्भात सम्प्रदाय' के नाम से चल रही है इसमें श्री शारदाबाई विनय, विवेक की प्रतिमूर्ति, आगमज्ञा, सरल गम्भीर निडर वक्ता एवं खम्भात सम्प्रदाय में श्रमणों की विच्छिन्न कड़ी को जोड़ने वाली साध्वी थीं, इनके नाम से प्रवचनों की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। क्रियोद्धारक पूज्य हरिदास जी महाराज के पंजाबी समुदाय में श्रमणी संघ का आरम्भ उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर विक्रमी संवत् 1730 के लगभग महासती श्री खेतांजी से होता है। इनकी परम्परा में श्री वगतांजी निर्मल मतिज्ञान धारिणी थी । आहार की शुद्धता, अशुद्धता का ज्ञान वे देखते ही कर लेती थीं। सीतांजी द्वारा 5000 लोगों ने माँस मदिरा का त्याग किया था, श्री खेमांजी ने 250 जोड़ों को आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत प्रदान कराया था। श्री ज्ञानांजी ने विच्छिन्न साधु - परम्परा की कड़ी को जोड़ने का अद्भुत कार्य किया। आचार्य अमरसिंह जी महाराज और आचार्य सोहनलाल जी महाराज जैसी महान हस्तियाँ जैन समाज को महासती श्री शेरांजी से प्राप्त हुई थीं। श्री गंगीदेवी जी बीसवीं सदी के प्रारम्भ की अत्यन्त धैर्यवान चारित्रवान श्रमणी थी। 21 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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