Book Title: Jain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 34
________________ जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण परम्परा में प्रवर्तिनी श्री यशकंवर जी मेवाड़सिंहनी के नाम से प्रख्यात हैं। जोगणिया माता पर होने वाली बलिप्रथा को बंद करवाने का अभूतपूर्व कार्य आपने ही किया था। क्रियोद्धारक श्री लवजी ऋषि जी की महाराष्ट्र परम्परा में संवत् 1810 में विद्यमान शांत स्वभावी राधा जी के नाम का उल्लेख है। इनके शिष्या परिवार में प्रवर्तिनी श्री कुशलकंवरजी ने अनेक स्थानों के नरेशों को व्यसन मुक्त करवाया था। श्री सिरेकंवरजी आत्मार्थिनी साध्वी थी, गुरूजनों के प्रति अविनयसूचक शब्दों का उच्चारण हो जाने पर तत्काल दो उपवास का प्रत्याख्यान कर लेती थी। श्री बड़े सुन्दरजी को आचार्य आनन्दऋषि जी महाराज अपनी शिक्षा प्रदाता गुरूणी कहकर आदर देते थे। प्रवर्तिनी रतनकंवर जी ने राजा चतरसेनजी द्वारा दशहरे के दिन होने वाली भैंसे की बलि को बंद करवाया था तथा अनेक ग्रामों के नरेशों को माँस मदिरा का त्याग करवाया था। श्री आनन्दकंवर जी ने सर्प के विष को महामंत्र के प्रभाव से दूर कर लोगों को जैन धर्म के प्रति आस्थावान बनाया था। प्रवर्तिनी श्री उज्ज्वलकुमारी जी से चर्चा वार्ता कर महात्मा गाँधीजी असीम शांति व आनन्द का Jain Education International .19 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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