Book Title: Jain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 33
________________ जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण और आचार्य हरजी स्वामी। उक्त सभी आचायों का काल विक्रम की सत्रहवीं सदी से अठारहवीं सदी का है, किन्तु इनकी श्रमणी-परंपरा का काल प्रायः अठारहवीं-उन्नीसवीं सदी से ही उपलब्ध होता है। आचार्य श्री जीवराज जी की परम्परा के आचार्य अमरसिंह जी महाराज की परम्परा में अद्यतन 1200 के लगभग श्रमणियों के दीक्षित होने की सूचना प्राप्त होती है, इनकी आद्या साध्वी श्री भागांजी, सद्दांजी थीं, इनका समय संवत् 1810 का है। ये महान विदुषी शास्त्रज्ञा एवं तपस्विनी थीं। प्रवर्तिनी श्री सोहनकंवर जी आगमज्ञान की गहन ज्ञाता, तपस्विनी, सेवामूर्ति व चंदनबाला श्रमणी संघ की प्रथम प्रवर्तिनी थी। श्री शीलवती जी श्री कुसुमवतीजी अनेक धर्मिक संस्थाओं की प्रेरिका, कठोर संयमी महासती थी। श्री पुष्पवतीजी बहुमुखी प्रतिभा की धनी, साहित्यकी साध्वी तथा अनेक श्रमण-श्रमणियों की उद्बोधिका हैं। श्री जीवराजजी महाराज की नानक राम जी म. की परम्परा में डॉ. ज्ञानलता जी, डॉ. दर्शनलता जी, डॉ. चारित्रलता जी, डॉ. कमलप्रभा जी आदि जैन जैनेत्तर दर्शन की उच्चकोटि की विद्वान साध्वियाँ हैं। जीवराज जी की श्री शीतलदास जी महाराज की 18 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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