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जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण
अनुभव करते थे, इनकी विद्वत्ता और विषय निरूपण शैली अद्वितीय थी। श्री सुमतिकंवर जी ने महिला समाज की जागृति व उन्नति के अनेक प्रशंसनीय कार्य किये। प्रवर्तिनी श्री प्रमोदसुधा जी समयज्ञा और योग्य सलाहकार विदुषी साध्वी थीं, उन्हें भारतमाता की पदवी से विभूषित किया गया था। आचार्या चंदना जी राजगृही वीरायतन में रहकर अनेक लोकमंगलकारी एवं मानव सेवा के कार्य कर रही हैं, ये एक स्वतन्त्र संघ की संचालिका है। डॉ. धर्मशीला जी सम्पूर्ण जैन समाज की सर्वप्रथम पी. एच. डी. डिग्री प्राप्त धर्मप्रभाविका साध्वी हैं। डॉ. मुक्तिप्रभा जी डॉ. दिव्यप्रभा जी जैनधर्म व दर्शन के गूढ़ रहस्यों की अनुसंधातृ एवं द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग की व्याख्याता है। वाणीभूषण श्री प्रीतिसुधाजी अपनी सधी हुई सुमधुर वाणी से हजारों की संख्या में जन समाज को व्यसनमुक्त कराने और कसाइयों के हाथों से पशुओं को छुड़वाकर गोरक्षण संस्थाएँ स्थापित कराने की सार्थक भूमिका निभा रही हैं। इसी प्रकार डॉ. ज्ञानप्रभा जी, श्री सुशील - कंवर जी, श्री कुशलकंवर जी, श्री किरणप्रभा जी, श्री आदर्शज्योतिजी, श्री नूतनप्रभा जी, श्री त्रिशलाकंवरजी आदि ऋषि सम्प्रदाय की सैंकड़ों विदुषी श्रमणियाँ हैं, जिनमें परिचय प्राप्त 210
गूढ़
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