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जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण
श्री खांति श्री जी विशाल साध्वी समुदाय की सृजनकत्री और अनेकों की उद्धारकर्त्री थी। श्री सुनन्दाश्री जी ने जैनधर्म की गरिमा में अभिवृद्धि करने वाले अनेक कार्य किये। श्री बसन्तप्रभा जी अच्छी कवयित्री विदुषी साध्वी थीं, सुमंगलाश्री जी पंडित महाराज के नाम से प्रसिद्ध थी। विक्रमी संवत् 1564 से प्रवहमान इस गच्छ की 85 श्रमणियों का परिचय हमें उपलब्ध हुआ।
चन्द्रकुल से निष्पन्न अंचलगच्छ में सोमाई नामक साध्वी ने एक करोड़ मूल्य के स्वर्णाभूषणों का परित्याग कर संवत् 1146 में दीक्षा अंगीकार की थी, इनके पश्चात् छंद व साहित्य की ज्ञाता प्रवर्तिनी मेरुलक्ष्मी हुई, वर्तमान में श्री जगत श्री जी का विशाल शिष्या परिवार है । इस गच्छ की साध्वी गुणोदया श्री जी अद्भुत समताभावी व करूणा की देवी हैं। श्री अरूणोदया श्री जी, श्री विनयश्री जी दृढ़ मनोबली तपोमूर्ति श्रमणियाँ हैं। ऐसी हजारों श्रमणियाँ इस गच्छ में हुई। वर्तमान में भी 239 श्रमणियाँ हैं। हमें केवल 203 श्रमणियों का सामान्य परिचय उपलब्ध हुआ है। उपकेशगच्छ में यद्यपि श्रमणियों का स्वतन्त्र उल्लेख इतिहास ग्रंथों में उपलब्ध नहीं होता, किन्तु अनेक शासन प्रभावक आचार्यों के इतिवृत्त में उनकी माता,
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