Book Title: Jain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 29
________________ जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण चिरस्मरणीय है । महत्तरा श्री मृगावती श्री जी अपनी विचक्षणता विदग्धता, तेजस्विता, नवयुग निर्माण की क्षमता और उदार दृष्टिकोण से भारत भर में विख्यात हुईं। काँगड़ा तीर्थ का उद्धार इनके ही प्रयत्नों का सुफल है। श्री जसवन्तश्री जी, पद्मलताश्री जी आदि महासाध्वियों ने पंजाब में घूम-घूम कर धर्म का खूब प्रचार-प्रसार किया। तपागच्छ की श्रमणियों में प्रवर्तिनी श्री कल्याणश्री जी का जैन समाज को संस्कारित करने में महान अनुदान रहा है। इनके सदुपदेशों से प्रेरित होकर अकेले 'डभोई' ग्राम में 60-65 मुमुक्षु आत्माएँ दीक्षित हुई। श्री दमयंतीश्री जी ने तपसाधिका के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है, इनके तपोमय जीवन के आँकड़े आश्चर्यचकित करने वाले हैं। आचार्य विजयरामसूरि जी डहेलावाला के समुदाय में श्री दर्शन श्री जी, श्री जयंति श्री जी, श्री कनकप्रभाश्री जी, श्री चन्द्रकलाश्री जी आदि तपोपूत महान श्रमणियाँ हैं। आचार्य विजयलब्धिसूरि जी के समुदाय की श्री रत्नचूलाश्री जी अपने विशाल श्रमणी संघ में 'सरस्वती सुता' के नाम से प्रख्यात साध्वी रत्न हैं। इन्हीं की भगिनी वाचंयमाश्री जी प्रखर बुद्धिसम्पन्न, कुशल संघ संचालिका है। 14 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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