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जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण थी। प्रवर्तिनी पुण्यश्री जी के वैराग्य रस से ओतप्रोत उपदेशों से 116 मुमुक्षु आत्माएँ दीक्षित हुईं। प्रवर्तिनी शिवश्री जी, प्रेमश्री जी, ज्ञानश्री जी, वल्लभश्री जी ने संघमें विशिष्ट स्थान प्राप्त किया था। जैन कोकिला परम समाधिवंत प्रवर्तिनी विचक्षणश्री जी, महनीय गुणों से सुशोभित श्री मनोहरश्री जी बहुआयामी प्रतिभा की धनी श्री सज्जनश्री जी, जैन द्रव्यानुयोग की विशिष्ट अध्येत्री, अनेक संस्थाओं की प्रेरिका मणिप्रभाश्री जी आदि खरतरगच्छ की विशिष्ट साध्वियाँ हैं।
तपागच्छ में प्रवर्तिनी शिवश्री जी, तिलकश्री जी, तीर्थश्री जी, पुष्पाश्री जी, रेवतीश्री जी, राजेन्द्रश्री जी, मृगेन्द्र श्री जी, निरंजनाश्री जी, मलयाश्री जी आदि विशाल श्रमणी संघ की संवाहिका महाश्रमणियाँ हुईं। विशिष्ट तपाराधना के साथ वर्धमान तप की 100 ओली पूर्ण करने वाली श्रमणियों में श्री तीर्थश्री जी, श्री धर्मोदयाश्री जी, श्री सुशीलाश्री जी, श्री अरूजाश्री जी, श्री निरूपमाश्री जी, श्री रेवतीश्री जी, श्री रोहिताश्री जी, श्री कल्पबोधश्री जी, श्री प्रियधर्माश्री जी, श्री धर्मविद्याश्री जी, श्री धर्मयशाश्री जी, श्री इन्द्रियदमा श्री जी, श्री हर्षितवदनाश्री जी, श्री जितेन्द्र श्री जी, श्री महायशाश्री जी आदि संख्याबद्ध श्रमणियाँ हैं। श्री
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