Book Title: Jain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 16
________________ विश्व में अनेक धर्म हैं, उन धर्मों का सामाजिक लौकिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक उन्नति में क्या अवदान रहा, इसे जानने के लिए उस धर्म के इतिहास को जानना आवश्यक है। जैन धर्म एक शुद्ध चिरन्तन और सार्वजनीन धर्म है, उसके चतुर्विध तीर्थ श्रमणश्रमणी, श्रावक और श्राविका रूप संघ में श्रमणी संघ एक महत्त्वपूर्ण इकाई है । यद्यपि जैन श्रमणी संघ का इतिहास प्रलम्ब अतीत से अद्यपर्यन्त गंगा की निर्मल धारा के समान अनवरत चलता चला आ रहा है, किन्तु इतिहास के सीमित साधन, श्रमणी संघ का शतशाखी विस्तार और श्रमणी परम्परा की प्रामाणिक विकास कथा का अभाव - इन सब कारणों से श्रमणी संघ की कड़ी से कड़ी को जोड़ना और उनके सम्पूर्ण योगदानों को संग्रहित करना एक दुःसाध्य कार्य है। तथापि भगवती सूत्र, अन्तकृद्दशांग, ज्ञातसूत्र, निरयावलिका आदि आगम साहित्य निर्युक्तियाँ भाष्य, चूर्णि आदि व्याख्या - साहित्य, प्रभावक चरित्र, त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, पउमचरियं आदि चरित्रग्रंथ, पुराण - साहित्य, कथा-साहित्य, विविध गच्छों से सम्बन्धित पट्टावलियों, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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