Book Title: Jain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 24
________________ जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण प्रदातृ श्री विशुद्धमती जी, कठोर साधिका आर्यिका श्री अनन्तमती जी, क्षुल्लिका श्री अजितमती जी, कवयित्री लेखिका तपस्विनी क्षुल्लिका श्री चन्द्रमती जी, जिनमती जी आदि ज्योतिर्पञ्ज महान आर्यिकाएँ दिगम्बर-परम्परा में हुई हैं। श्वेताम्बर परम्परा : जैनधर्म की श्वेताम्बर परम्परा अपने अस्तित्त्वकाल से ही अति विस्तृत समृद्ध और परिष्कृत परम्परा रही है। इस परम्परा में खरतरगच्छ का इतिहास विक्रमी संवत् 1080 से प्रारम्भ होकर अद्यतन गतिमान है। वर्तमान में इस गच्छ की श्रमणियों की संख्या 240 है। तपागच्छ का उदयकाल विक्रम की तेरहवीं सदी है, वहाँ से प्रारम्भ होकर वि. सं. 1791 तक यह परम्परा प्राप्त होती है, उसके पश्चात् डेढ़ सौ-दोसौ वर्षों की अवधि के बाद संवत् 1926 से पुनः इस गच्छ की श्रमणियों का इतिहास वर्तमान तक अनेक समुदायों में विभक्त आचार्यों के नेतृत्त्व में बरसाती नदी के समान विशुद्ध रूप से प्रवहमान है। विशेष रूप से आचार्य आनन्दसागरसूरीश्वर, विजय प्रेमरामचंद्रसूरीश्वर, विजय प्रेम भुवन भानुसूरीश्वर, विजय जितेन्द्रसूरीश्वर, विजय . 9 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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