________________
जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण आर्यिका श्री चन्द्रमती जी का नाम सर्वप्रथम जानने को मिलता है, वे 101 वर्ष की आयु पूर्ण कर दिल्ली में स्वर्गवासिनी हुई। इनके पश्चात् घोर तपस्विनी श्री धर्ममती माताजी, सम्पूर्ण रसों की आजीवन प्रत्याख्यानी श्री वीरमती जी, अनेकों मुनि आर्यिका ऐलक क्षुल्लक व ब्रह्मचारियों की निर्मातृ विदुषी श्री इन्दुमती जी हुई।
वर्तमान में दिगम्बर संघ की सर्वप्रथम बालब्रह्मचारिणी आर्यिका गणिनी श्री ज्ञानमती जी हैं, इन्होंने बड़े-बड़े आचार्यों की टक्कर के गूढ दार्शनिक ग्रंथों का प्रणयन किया, ऐसे 150 से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर ये साहित्यकी के रूप में प्रतिष्ठित हुई। आर्यिका सुपार्श्वमती जी जिनकी ज्ञान-निर्जरित लेखनी से बीसियों ग्रंथ प्रस्फुटित हुए। प्रत्येक क्षेत्र में विद्वत्ता को प्राप्त ये धर्म व शासन को चार चाँद लगाने वाली हुईं। गणिनी विजयमती जी इक्कीसवीं शताब्दी की सर्वप्रथम गणिनी, बहुभाषाविद्, अनेक धर्म संस्थाओं की प्रेरिका एवं विपुल साहित्यकी विशिष्ट संयमी साध्वी हैं। इसी प्रकार दर्शनशास्त्र की प्रकाण्ड पंडिता श्री जिनमती जी, दुर्गम ग्रन्थों की टीकाकर्ती, ज्ञान की अनुपम निधि श्री विशुद्धमती जी, इक्कीसवीं सदी की प्रथम बाल ब्रह्मचारिणी गणिनी एवं सर्वाधिक दीक्षा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org