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जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है, यह प्रतिमा यद्यपि इक्कीसवीं सदी की है, किन्तु एक जैनाचार्य के हृदय में अपनी गुरूमाता साध्वी के लिए कितना आदर व सम्मान का स्थान था, यह उस प्रतिमा से प्रकट होता है । भद्रेश्वर तीर्थ में जो हाल में ही साध्वी प्रतिमा उत्खनन से प्राप्त हुई और उसका चित्र आचार्य शीलचन्द्रसूरि जी ने 'अनुसंधान' पत्रिका के मुखपृष्ठ पर अंकित किया है, यह चौदहवीं शताब्दी की दुर्लभ भव्य प्रतिमा है का चित्र हमें उपाध्याय भुवनचन्द्र जी महाराज से प्राप्त हुआ है। शहजादराय रिसर्च इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलोजी बड़ौत में संग्रहित हस्तलिखित प्रतियों से भी कुछ प्राचीन चित्र हमें मिले हैं।
प्रागैतिहासिक काल :
प्रागेतिहासिक काल में भगवान ऋषभदेव की सुपुत्रियाँ भगवती ब्राह्मी और सुन्दरी ने श्रमणी संघ की नींव डाली, उनकी उर्वर मेधा से आज विश्व की सम्पूर्ण वर्ण रूप और अंक रूप विद्याएँ पल्लवित और पुष्पित हुई हैं। इन युगल श्रमणियों के योगदान से मात्र जैन संस्कृति ही नहीं विश्व संस्कृति भी चिरऋणी रहेगी। तीर्थंकर अजितनाथ के समय सुलक्षणा ने शुद्ध
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