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जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण सम्यक्त्व की प्रेरणा देकर अपने पति शुद्धभट्ट के साथ संयम अंगीकार किया। तीर्थंकर मल्लिनाथ ने श्रमणी पर्याय में तीर्थंकर पद पर आरूढ़ होकर शाश्वत सत्य को 'अछेरा' बना दिया था। साध्वी राजीमती ने अपने देवर रथनेमि को कर्त्तव्य बोध का सुन्दर पाठ पढ़ाकर आत्म साधना में स्थिर किया था। साध्वी मदनरेखा ने युद्ध स्थल पर पहुँच कर प्रेम एवं मैत्री का निर्नाद किया, पोटिला ने अथक प्रयत्न करके अपने पति को धर्म के सन्मुख किया। रानी कमलावती ने भोगों का ऐसा दारूण चित्र अपने पति ईषुकार के समक्ष चित्रित किया कि राजा भोगों से उपरत होकर दीक्षित हो गया।
इसी प्रकार कथा साहित्य में आरामशोभा, कनकमाला कुबेरदत्ता, कलावती, गुणसुन्दरी, भुवनसुन्दरी, मैनासुन्दरी, ऋषिदत्ता, रोहिणी, विजया, सुतारा, श्रीमती, सुरसुन्दरी आदि सैंकड़ों शीलवती सन्नारियों के वर्णन है, जिन्होंने अपने अप्रतिम शौर्य एवं अनुपम बुद्धि चातुर्य का परिचय देकर अन्त में संयम साधना कर जैन शासन की महती प्रभावना की थी। ऐसी आगम व आगमिक व्याख्या-साहित्य तथा पुराण एवं कथा-साहित्य से कुल 360 श्रमणियों का विशिष्ट परिचय उपलब्ध हुआ है। .
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