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जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण प्रशस्ति ग्रंथों, हस्तलिखित ग्रंथों, जैन शिलालेख एवं अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों में यत्र-तत्र बिखरे श्रमणियों के इतिहास को संग्रहित कर कालक्रमानुसार व्यवस्थित करने के इस प्रयास में सैंकड़ों ही नहीं, हजारों श्रमणियों की जानकारी प्राप्त होती है। कला व स्थापत्य में श्रमणी-दर्शन :
सर्वप्रथम कला और स्थापत्य को ही लें तो ईसा की प्रथम शताब्दी से बीसवीं शताब्दी तक विभिन्न स्थलों से सम्बन्धित अनेक दुर्लभ चित्र श्रमणियों के प्राप्त होते हैं इनमें प्रतिमा चित्र विशेषतः मथुरा, देवगढ़ (उत्तरप्रदेश), पाटण, सूरत, मातर एवं भद्रेश्वर तीर्थ से उपलब्ध हुए हैं। कुछ चित्र साराभाई मणिलाल नवाब अहमदाबाद से प्रकाशित 'जैन चित्र कल्पलता' में भी अंकित हैं। सुश्रावक गुलाबचंद जी लोढ़ा चीराखाना दिल्ली के संग्रह में विज्ञप्ति पत्रों में भी श्रमणियों के कुछ चित्र हैं। दिल्ली जैन श्वेताम्बर मन्दिर की दीवारों व छतों पर उकेरित मुस्लिम काल के भी कुछ चित्र श्रमणियों के हैं। चित्तौड़ किले पर आचार्य हरिभद्रसूरि के समाधि मन्दिर की मूर्ति के मस्तक भाग पर महत्तरा साध्वी याकिनी का चित्र
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