Book Title: Jain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Author(s): Shankarlal Munot
Publisher: Shankarlal Munot

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Page 13
________________ श्री जैन शासन संस्था मुताबिक विधियें और उन उन विधियों में उपयोगी उपकरण तथा तीर्थ कल्याणक भूमि आदि । इनके अतिरिक्त देवद्रव्य आदि पांच द्रव्य सात क्षेत्र मिलाकर होने वाले बारह धर्म द्रव्य और उनसे सम्बन्धित भिन्न २ प्रकार के छोटे बड़े दूसरे अनेक खाते आदि सब जैन शासन के अनन्य स्वामित्व को सम्पत्ति है। १४. शासन को सम्पत्ति के संचालक के अधिकारः--- जैन शासन की सम्पूर्ण सम्पत्ति पर जैन शासन को आज्ञानुसार संचालन करने का सम्पूर्ण अधिकार जिनाज्ञानुसारी श्रमण प्रधान चतुर्विध श्री संघ को अपने अपने अधिकार मुजब है। १५. श्री संघ के अधिकारों का स्वरूपः-. [अ] श्री गणधर भगवंतों से परम्परागत मुख्य आचार्य जो श्री तीर्थकर भगवंत के प्रतिनिधि हैं । [आ] समय समय पर हुए अन्य आचार्य, उपाध्याय, गणि, पन्यास त्यागी मुनि जो मुख्य आचार्य के प्रतिनिधि हैं। [इ] स्थानीय संघ के आगेवान मार्गानुसारी, देशविरतिधर तथा द्रव्य सप्तिका गाथा ५, ६, ७ में धर्म द्रव्यों की रक्षा, व्यवस्था, संचालन की योग्यता जो बतलाई गई है, उसको यथाशक्ति आचरण करने वाले गृहस्थ, जो कि मुख्य आचार्य के स्थानिक प्रतिनिधि हैं । स्थानीय संघ जो मुख्य आगेवान के मार्गदर्शन के अनुसार चलते हैं। यह जैन शासन की शास्त्रानुसारी संचालन पद्धति है। [ई] देव, गुरु, शासन को परम्परागत आज्ञा के विरुद्ध आचरण करने का श्री संघ के किसी भी व्यक्ति को अधिकार नहीं है । [3] यदि कोई अज्ञानता के कारण आज्ञा विरुद्ध कुछ कहे और श्री संघ के प्रधान आचार्य महाराज के समझाने या आज्ञा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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