Book Title: Jain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Author(s): Shankarlal Munot
Publisher: Shankarlal Munot

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Page 18
________________ श्री जैन शासन संस्था और श्री संघ की संस्था कायम रहती है। वर्तमान काल में हर एक विषय में कमेटियां करने का अंधानुकरण शासन, श्री संघ तथा धर्म को हानिकर्ता होता है। आधुनिक न्यायतंत्र से भी "लिखा उतना ही प्रमाण" का अर्थ सत्यरूप स्वीकार कर शासन, श्री संघ के वैधानिक सनातन तत्व परंपरा रूप होने पर भी, उसके स्पष्ट अक्षर न होने के कारण सर्वज्ञ प्रणीत शासन के स्थायी विधान को अपने नये कायम किये हुए विधान के अक्षरों को आगे कर अधूरी और अनियत नियम वाली चोज पर न्याय की मोहर लगाकर मुग्ध जनता को असली वस्तु से बहुत दूर धकेल देने का काम हो जाता है। इसमें अपनी अनभिज्ञता या कम समझ से गुमराह होकर नये विधान खड़े कर अनादि सिद्ध शासन श्री संघ को मर्यादा (विधान) को छिन्न भिन्न करने का और आधुनिक युग के भौतिकवाद अर्थात अनात्मवाद की विचारधारा एवं आचार में फंस जाने का काम अपने हाथों से हो जाता है, यह खूब ही विचारणीय है, अनर्थकारी है। स्थानिक श्री जैन शासन और श्री संघ (सामान्य रूपरेखा) द्रव्य संपत्तिः-स्थावर जंगम धनादि और अनुयायियों की संख्या आदि भाव संपत्तिः-श्रद्धा, आचरण, ज्ञान आदि [इन सबका सम्बन्ध सकल श्री संघ शासन के साथ होते हुए भी स्थानिक श्री जैन शासन से भी है।) किसी भी गांव, शहर या स्थल में एक या उससे अधिक जैन धर्म के अनुयायी व्यक्ति हों अथवा कोई भी जैन शासन की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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