Book Title: Jain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Author(s): Shankarlal Munot
Publisher: Shankarlal Munot

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Page 39
________________ श्री जैन शासन सस्था ३१] ६. चुनाव करने वाले ( Voters) १८ वर्ष हो जाने मात्र से सभी कोई जानकार और अनुभवी नहीं है और उनकी संख्या हमेशा ज्यादा रहती है। इससे प्रलोभन के कारण चुनाव में योग्य व्यक्ति विशेष प्रमाण में नहीं आ सकते है । ७- इसलिये योग्यता के आधार पर पंसदगी की पद्धति यह सच्ची भारतीय संस्कृति है और श्री जैन शासन सर्वज्ञ प्रणीत आज्ञा प्रधानता मुख्य होकर अनंत जीवों का कल्याण अनादि काल से हो रहा है और होगा । चुनाव पद्धति बहुमतवाद, वोटिंग आदि पद्धति से हरएक नियम आदि में समय - २ पर फेरफार करना पड़ता है । जब श्री जैन शासन अनादि अनंत है यह अपना प्रभु महावीर के शासन का विधान जी आज से करीब पचीस सौ वर्ष पूर्व हुआ । वह भविष्य में भी करीब साढ़े अठारह हजार वर्ष तक कायम रहेगा । यह चुनाव और बहुमतवाद पद्धति में कभी रह सकता नहीं, क्योंकि कलिकाल में धर्माराधन करने वाले और सच्ची जानकारी वाले श्रद्धावान् आत्माओं की संख्या कम होती जा रही है । इससे मूल विधान कायम रख कर उस पर चलना चाहिये । ८. चुनाव बहुमतवाद से, अपने निजी अभिप्राय से सर्वज्ञ भगवंत की आज्ञा, शास्त्राज्ञा गुरु आज्ञा, परम्परा, शासन की शिष्ट मर्यादा आदि का लोप होता है, यह भयंकर नुकसान है । ९. पाश्चात्य पद्धति के पाये पर खड़ी हुई चुनाव बहुमतवाद वोटर्स वोटिंग प्रमुख ट्रस्टी संस्थाएं आदि पद्धति से अब वर्तमान राष्ट्रव्यवस्था की परिस्थति भी डाँवाडोल हो रही है और भारतवर्ष में अनीति अप्रामाणिकता, सत्ता लोलुपता और भ्रष्टाचार बढ़ रहा है । यह खराबी श्री जैन शासन और श्री संघ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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