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श्री जैन शासन संस्था
४. श्री संघ का अधिवेशन :
कार्यवाहक वर्ष में एक या दो या तीन दफा अपने कार्य का ब्यौरा श्री संघ के समक्ष प्रस्तुत करे । विशेष कार्यो के लिये श्री संघ की आज्ञा प्राप्त करनी चाहिये । प्रत्येक कार्य शास्त्र संघ परम्परा की आज्ञानुसार करने का होने से सबका एक ही अभिप्राय होना स्वाभाविक है। किसी बात में बुद्धिभेद हो तो हठाग्रह खींचा-खींची न रखते हुए गीतार्थ योग्य मुनिवर या आचार्य के समक्ष रखकर योग्य निर्णय लेना चाहिए ।
५. कार्यवाहक का परिवर्तन :
___ अगर कार्यवाहक, सहायक कार्यवाहक या कोषाध्यक्ष बदलने की आवश्यकता महसूस हो तो या किसी कार्यवाहक की जगह खाली हो तो श्री जैन संघ अपने अधिवेशन में निर्णय कर अन्य कार्यवाहक को नियुक्त कर सकता है ।
६. कार्यसंचालन की पद्धति :
संस्था का कार्य "संचालन संस्था" के नाम से होगा । कोई भी वहीवटदार अपने व्यक्तिगत नाम से चल या अचल सम्पत्ति का लेन-देन नहीं कर सकेगा। बेचाननामे, किराया चिठी सब संस्था के नाम पर होगे। संस्था को रकम संस्था के नाम से ही जैन शास्त्रों में निर्दिष्ट स्थानों में रखी जावेगी ।
धार्मिक क्षेत्रों का वहीवट प्रबन्ध परम्परागत जैन शास्त्रों के अनुसार होगा। इसमें परिवर्तन करने का अधिकार किसी भी स्थानीय संघ या किसी भी व्यक्ति को सर्वानुमति या बहुमत से भी
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