Book Title: Jain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Author(s): Shankarlal Munot
Publisher: Shankarlal Munot

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Page 47
________________ श्री जैन शासन संस्था ३९] परिशिष्ट ५ (विधान की रूपरेखा) श्री जैन संघ का शास्त्रीय और वास्तविक विधान (बंधारण) तीर्थस्थापन के समय से चला आ रहा है, जिसका दिग्दर्शन कराया है। इससे विपरीत विधान श्री संघ की सम्पत्ति या ट्रस्ट के लिये किसी को कराने का अधिकार नहीं है। किन्तु वर्तमान राज्यसत्ता के ट्रस्ट आदि के कानून और अपने बन्धु जो परम्परा के वहीवटी (संचालन) ज्ञान एवं शासनमर्यादा से अनभिज्ञ होने से सरकार में देने के लिये विधान की मांग कर रहे है, उनको मार्गदर्शन कराया जाता है । १. नाम :-इस संख्या, का नाम गांव.........." ........... रहेगा। उद्देश्य : ___ श्री जैन शासन को द्रव्य और भाव सम्पत्ति (गांव, शहर या प्रदेश) का रक्षक व संचालन आदि परम्परागत सांस्कृतिक पद्धति शास्त्र आदि को आज्ञानुसार तथा भिन्न-भिन्न समय पर आचार्य देवों से लिये गए आदेशों और निर्णयानुसार करना । ३. संचालन का अधिकार : ... स्थानीय श्री जैन संघ द्रव्य सप्ततिका शास्त्र आदि में निदिष्ट गुण वाले श्रावक को गीतार्य मुनिवर की राय से नियुक्त करें। १. योग्यता के लिये द्रव्य सप्ततिका शास्त्र में अच्छा वर्णन है। १४४४ ग्रंथ के प्रणेता श्री हरिभद्र सूरिजी महाराज कृत पंचासक सूत्र में भी वर्णन है : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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