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धर्म क्षेत्र के वहीवटदारों को शासन परंपरा के हित की दृष्टि से समझने योग्य साथ ही वर्तमान काल की दृष्टि से विचारणीय बिन्दु
श्री जैन शासन संस्था
चितक- पू० पं० श्री अभय सागर जी म० सा० के शिष्यरत्न पू० पं० श्री निरूपम सागर जी म० सा० ।
संशोधक – आगमोद्धारक श्री के शिष्यरत्न पू० आ० श्री सूर्योदय सागर मूरिजी म० सा० ।
१. सात क्षेत्र का संरक्षण करना, यह समस्त चतुविध संघ का कर्तव्य है ।
२. सात क्षेत्र में नीचे के क्षेत्र की अपेक्षा ऊपर के क्षेत्र की महत्ता समझना एवं पालन करना ।
३. जिन प्रतिमा और जिन मन्दिर ( देव द्रव्य) संबंधी द्रव्य का भोग (कमी) कर बाकी के क्षेत्रों के द्रव्य की वृद्धि करना, यह बास्तबिक दृष्टि से उचित नहीं है ।
४. ज्ञान द्रव्य का भोग (कमी-लोप) कर साधु-साध्वी वैयावच्च, तपस्वी अथवा साधमिक के द्रव्य की वृद्धि भी उचित नहीं । ५. वैयावच्च संबंधी द्रव्य का भोग ( कमी, अवमूल्यन ) कर, तपस्वी या साधर्मिक द्रव्य की वृद्धि भी उचित नहीं । ६. वैयावच्च, तपस्वी अथवा साधर्मिक के द्रव्य का भोग ( कमी ह्रास) कर सामाजिक द्रव्य (विद्यालय, औषधालय, निर्धन सहायता) की वृद्धि भी बिल्कुल योग्य नहीं ।
७. इस प्रकार ऊपर के द्रव्य के भोग (कमी) पर नीचे
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