Book Title: Jain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Author(s): Shankarlal Munot
Publisher: Shankarlal Munot

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Page 50
________________ श्री जैन शासन संस्था - नहीं है और न होगा। किन्तु सिद्धान्त एवं मूलभूत तत्वों की रक्षा के लिए अपने-अपने क्षेत्र की परिस्थिति के अनुसार वहीवट को सुलभता के लिये जैन शासन की मर्यादा के अविरुद्ध नियम प्रत्येक स्थानीय श्री संघ या कार्यवाहक निश्चित कर सकते हैं । संचालन में जिनाज्ञा प्रधान रहेगी। आडोटर या संघ द्वारा नियुक्त श्रावक द्वारा हिसाब जांच किया जाय और संघ के समक्ष प्रस्तुत किया जाय । संस्था द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्त रकम उन्हीं क्षेत्रों में खर्च की जायेगी किन्तु सात क्षेत्रों (जिन प्रतिमा, जिन मन्दिर, सम्यकज्ञान साधु, साध्वी, श्रावक धाविका) में प्राप्त रकम का उपयोग जिनाज्ञानुसार किया जा सकेगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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