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श्री जैन शासन संस्था
अनुकम्पा क्षेत्र में अपवाद अनुकम्पा क्षेत्र में में अपवाद इस तरह है-हिसा त्यागरूप और जीवदयारूप अनुकम्पा क्षेत्र है। १. अनुकम्पा का द्रव्य ऊपर के अधिक गुणयुक्त आराधना के क्षेत्र में भी नहीं जा सकता।
या तो ऊपर के गुण-गुणी आराधना के क्षेत्र में से भी नहीं ले सकते । अनुकम्पा में खर्च हो नहीं सकते, कारण ऊपर के क्षेत्र गुण-गुणी का उच्च क्षेत्र होने से नीचे के क्षेत्र में काम न आ सके। ऐसे अनुकम्पा का क्षेत्र दयापात्र और निराधार है। इससे वह द्रव्य ऊपर के समर्थ क्षेत्र में जाना भी नहीं चाहिये, यह
शास्त्रज्ञा है। -- २. अनुकम्पा क्षेत्र में उच्च कक्षा के जीव की रक्षा मुख्यता से करने
की है जैसे (क) अनुकम्पा दान में प्रथम दानदुःखी निराश्रित मानव को दान करना चाहिये उनके भी भेद प्रभेद हैं। (ख) मानव के बाद दूसरे पंचेन्द्रीय पशु पक्षी जानवर की दया आती है। (ग) फिर चउन्द्रीय, तेन्द्रिइय, बेइन्द्रीय, एकेद्रिय जीव
की दया भी होती हैं। ३. परन्तु उनमें-(अ) उच्च कक्षा को समर्पण किया हुआ द्रव्य उतरती कक्षा में खर्च हो सकता है।
(आ) किन्तु उतरती कक्षा के जीव को अर्पण किया हुआ द्रव्य उच्च कक्षा वाले जीव के काम में न आवे ।
कारण-(अ) उच्च कक्षा के जीव की हिंसा में ज्यादा पाप है, इससे उनकी प्रथम रक्षा करनी परन्तु उतरती कक्षा को समर्पण किया हुआ द्रव्य (दान) उच्च कक्षा के उपयोग में न लेना चाहिये । कारण यह निकृष्ट द्रव्य निर्माल्य द्रव्य होता
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