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श्री जैन शासन संस्था
दशमी, अक्षय-तृतियादि पर्वो के निश्चित दिनों में खर्च करने के लिये दाताओं को दी हुई रकस उसी दिन उसी भक्ति के कार्य में खर्च करनी चाहिए।
(१४) उपाश्रय :-धर्मशाला यानि धार्मिक क्रिया करने का स्थान । यह स्थान साधु साध्वी व श्रावक श्राविकाओं के धार्मिक आराधना के लिये पवित्र धार्मिकस्थान है । इसका उपयोग धार्मिक कार्य के लिए ही होता है। व्यावहारिक कोई भी कार्य स्कूल, राष्ट्रीय प्रवृत्ति आदि कोई भी समारोह, सभा या किसी भी प्रवृति में इस धार्मिक स्थान का उपयोग नहीं हो सकता है। इन स्थानों में गवर्नमेन्ट या सांसारिक कार्यों में मुआवजा देकर भी काम में नहीं ले सकेंगे, न कब्जा ही कर सकेंगे। क्योंकि यह तो जैन शासन का अबाधित स्थान है और रहेगा ।
(१५) अनुकम्पा :-पांच प्रकार के जिनेश्वर प्रणीत दानों में अनुकम्पा का समावेश है। कोई भी दोन दुःखी, निःसहाय, वृद्ध, अनाथ आत्माओं के अन्न, पान, वस्त्र, औषधि आदि देकर द्रव्य और भाव दुःख टालने का प्रयत्न प्रयास इस द्रव्य से हो सकता है । यह सामान्य कोटि का द्रव्य होने से ऊपर के किसी भी धार्मिक क्षेत्र में उपयोग नहीं किया जा सकता किन्तु जीव दया में खर्च हो सकता है। .
(१) जीवदया :-इस खाते का द्रव्य प्रत्येक तिर्यंच जानवर की द्रव्य और भाव दया के कार्य में अन्न, पान, औषध आदि से हर एक प्रकार के साधनों से उनका दुःख दूर करने के लिये मनुष्य के सिवाय प्राणीमात्र की दया के कार्य में खर्च हो सकता है। यह द्रव्य अति कनिष्ठ कोटि का होने से दूसरे किसी उच्च क्षेत्र में खर्च नहीं होकर जीवदया की रकन जीवदया में ही लगाना चाहिए।
(१७) ब्याज किराया आदि आमद :-जिस खाते या
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