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श्री जैन शासन संस्था
विहार आदि को अनुकूलता के लिए होता है। इन क्षेत्रों का द्रव्य आवश्यकता पड़ने पर ऊपर के तीन क्षेत्रों में श्री संघ की आवश्यकतानुसार खर्च किया जाता है । किन्तु नीचे के दो श्रावकश्राविकाओं के क्षेत्रो में खर्च नहीं हो सकता ।
(६-७.) श्रावक-श्राविका क्षेत्र :--भक्ति भाव से इस क्षेत्र में समपित हुआ द्रव्य श्रावक-श्राविकाओं को धर्म में स्थिर करने के लिए आपत्ति के समय सहायता के लिए और हर एक प्रकार की भक्ति के लिए है । यह धार्मिक पवित्र द्रव्य है, इसलिये चेरिटी सामान्य जनता, याचक, दीन, दुखी ऐसे किसी भी मानव या संस्था के दया अनुकम्पा आदि व्यवहारिक कार्यों के उपयोग में नहीं आ सकता है।
(८) गुरु द्रव्य :-पंच महाव्रतधारी संयमी त्यागी महापुरुषों के सामने गॅहली, अंगपूजा के समय अपंण किया या गुरुपुजा की बोली का द्रव्य जिनचत्य के जीर्णोद्धार तथा नवीन चैत्य के निर्माण में ही खर्च करने का द्रव्यसप्ततिका में उल्लेख है। कहीं-२ सेवक या पुजारी का लाग हो तो उनको दिया जावे अन्यथा देव द्रव्य जीर्णोद्धार खाते में जाना चाहिये । श्री कुमारपाल राजा प्रतिदिन एक सौ आठ स्वर्ण कमलों से श्री हेमाचार्य की पूजा किया करते थे । प्रश्नोत्तर समुच्चय, आचारप्रदीप, अचारदिनकर, श्राद्धविधि आदि ग्रन्थों में श्री जिन और गुरु को अंग और अग्र पूजा का वर्णन मिलता है ।
(९) साधारण द्रव्य :-यह साधारण क्षेत्र का द्रव्य धामिक रिलीजियस (Religious) है। सात क्षेत्रों में से कोई भी क्षेत्र सीदाता होवे यानि घाटे में हो तो आवश्यकतानुसार इस क्षेत्र का द्रव्य उपयोग में आ सकता है। किन्तु व्यवस्थापक या कोई श्रावक निजी उपयोग में नहीं ले सकते है। न दीन-दुःखी या किसी भी जन-साधारण, सर्वसामान्य लोकोपयोगी, व्यवहारिक व
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