Book Title: Jain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Author(s): Shankarlal Munot
Publisher: Shankarlal Munot

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Page 29
________________ श्री जैन शासन संस्था २१] - निजी द्रव्य देना चाहिये । ज्ञान भण्डार का श्रावक श्राविकायें उपयोग करें तो वाषिक निछराबल देना चाहिए । ज्ञानद्रव्य धार्मिक आगम शास्त्र लिखवाने, छपवाने, उनकी रक्षा के लिए जरूरी चीज वस्तु लाने में खर्च हो सकता है। ज्ञान भण्डार के लिए ज्ञानमन्दिर बनवा सकते हैं किन्तु इस ज्ञान द्रव्य से बने मकान में साधु-साध्वियां पौषध व्रत वाले व श्रावक श्राविकायें निजी उपयोगमें-शयन, रहना, ठहरना आदि कार्य में उसका उपयोग नहीं कर सकते हैं। यह क्षेत्र देव द्रव्य जैसा ही पवित्र है इसलिए साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं के लिए निजी उपयोग में नहीं आ सकता है । व्यवहारिक शिक्षा में भी इस द्रव्य का उपयोग नहीं हो सकता है । ज्ञान शब्द का अर्थ जैन शास्त्रों में सम्यग्ज्ञान बतलाया है । श्री द्रव्य सप्ततिका में बतलाया है कि देव द्रव्य की तरह ज्ञान द्रव्य भी श्रावक को नहीं कल्पता है ।। चेइयदवं साधारणं च जो दूहइ मोहियमईओ। धम्मं च सो न याणेई अहवा बद्धाउओ नरए । द्रव्य सप्ततिका (४) धामिक शिक्षा खाता :- (समर्पित द्रव्य) सामिक श्रावक-श्राविकाओं ने अपना निजी द्रव्य धार्मिक अभ्यास के लिए समर्पण किया हो तो, इस रकम से श्रावक पंडित अध्यापक रख कर साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाओं को धार्मिक पठन-पाठन करवाया जाय तथा पुस्तक, पारितोषिक आदि पर खर्च किया जाय । किन्तु यह द्रव्य व्यवहारिक शिक्षण में किसी भी प्रकार से उपयोग में नहीं आ सकता है । (५) साधु-साध्वी क्षेत्रः-संयमधारी साधु-साध्वी महाराज की भक्ति वैयावच्च के लिए, दानियों द्वारा भक्ति निमित्त प्राप्त हुई रकम साधु साध्वीजी महाराज के संयम शुश्रूषा और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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