Book Title: Jain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Author(s): Shankarlal Munot
Publisher: Shankarlal Munot

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Page 27
________________ श्री जैन शासन संस्था ____ १९] परिशिष्ट १ ७ क्षेत्र आदि (१) जिन प्रतिमा (२) जिन मन्दिर (३) सम्यक ज्ञान (४) साधु (५) साध्वी (६) श्राक्क (७) श्राविका । (१) जिन प्रतिमा :-जिन प्रतिमा की पूजा के लिये किसी भी व्यक्ति का भक्ति से समपित द्रव्य. जिन बिम्ब द्रव्य है । प्रतिमाजी की अंग पूजा का द्रव्य जिन बिम्ब द्रव्य है। यह द्रव्य नवीन प्रतिमा भरने, बिम्ब के लेप करवाने, आंगी कराने प्रभु प्रतिमाताजी के चक्षु, टीका, आदि हर प्रकार की रक्षा के कार्य में खर्च हो सकता है। यह द्रव्य जिन बिम्ब के कार्य में होआ सकता है अतिरिक्त अन्य किसी कार्य में खर्च नहीं किया जा सकता है। (२) जिन मन्दिर :-(जिन चैत्य) भक्ति पूर्वक देवादि के हेतु समपित द्रव्य भी देव द्रव्य है। स्वप्न को बोली-१. च्यवन २. जन्म ३. दीक्षा ४. केवल ५. मोक्ष (निर्वाण) इन पांचों कल्याणकों के निमित जिन मन्दिर उपाश्रय या अन्य किसी भी जगह पर प्रभु भक्ति निमित्त बोली हुई उच्छामणी की रकम यह सब देव द्रव्य है । प्रभु पूजा, आरती, मंगल दीपक, अंजनशलाका, प्रतिष्ठा महोत्सव, उपधान को प्रबेशशुल्क (निछरावल) उपधान की माल, तीर्थ माल, इन्द्र माल आदि सभी बोली जो तीर्थंकर भगवान के आश्रित बुलवाई जावे वे सब ही देव द्रव्य हैं । इस द्रव्य का उपयोग प्राचीन जिन मन्दिरों के जीर्णोद्धार, नूतन मन्दिर के निर्माण और मन्दिर पर आक्रमण के समय रक्षा तथा देव और जिन चैत्य की भक्ति निमित्त कायों में किया जा सकता है। श्राद्धविधि में कहा है "जिनेश्वर भगवान की भक्ति, पूजा श्रावक को अपने निजी द्रव्य से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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