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श्री जैन शासन संस्था
मानने के लिए कोई बंधा हुआ नहीं है। कदाचित अनजान में या दबाब से या विश्वास से या भूल से स्वीकृत हो गया हो, उस पर अपनी सही या स्वीकृति हो तो भी वह अवैध होती है। न्याय से भी व्यर्थ गिनने योग्य है, अमान्य करने योग्य है । जैसे पुरुष का पुरुष के साथ लग्न हो गया हो तो क्या वह अमान्य गिनने योग्य नहीं है ?
इस तरह अज्ञान और धार्मिक हित से विरुद्ध कोई किसी को नियुक्त करे या कोई भी बाबत चाहे जैसी मजबूत रीति से स्वीकृति की हुई हो तो भी वह सच्ची रोति से अमान्य होने के योग्य है । यह सब समझने जैसा है। बहुत सी वस्तुएं श्री जैन शासन और श्री संघ के स बालन के लिये समझने जैसी है, वे सब गुरु मुख से जानने योग्य हैं, विवेक बुद्धि से समझ लेना आवश्यक है। ।
१८. स्थानीय श्री संघ को ध्यान में रखने लायक सकल शासन और सकल श्री संघ के कुछेक सामान्य नियम ऊपर बतलाए गये हैं, उनके आधीन रहकर काम करना उपयुक्त है। उनकी आज्ञा के सापेक्ष सब कार्यवाही करना चाहिये, क्योंकि स्थानीय श्री संघ सर्वथा स्वतंत्र नहीं है। सात क्षेत्र आदि में किसी खाते की रकम कहां-कहां काम आती है ? कहां-कहां काम नहीं आती है ? ऊपर के खातों में जाती है, परन्तु नीचे नहीं जाती, आदि जो शास्त्रीय व्यवस्था है, वह और उसके जैसी दूसरी भी जो धर्म शास्त्रों की आज्ञाएं हैं उसके अनुसार स्थानीय श्री संघ बधा हुआ ही है, यह वस्तु भूलने जैसी नहीं है।
स्थानीय श्री संघ बहुमत या ऐसे किसी भी सिद्धान्त (उसूल) पर अपना स्वतंत्र विधान नहीं बना सकते। ऐसा करना श्री संघ की महा आशातना है और सकल श्री संघ से जुदा होना है। यह ध्यान में रखना चाहिये ।
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