Book Title: Jain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Author(s): Shankarlal Munot
Publisher: Shankarlal Munot

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ श्री जैन शासन संस्था सिर्फ स्थानीय श्री संघ को अपना कार्य चलाने को सुविधा के लिये सकल श्री संघ के विधान मर्यादा के तत्व ध्यान में रखकर थोड़े से नियम बना लेने में बाधा नहीं है । परन्तु इस पर से बस ! इतने ही नियम हैं, ऐसा मानकर उन्हीं पर कायम रहने की भूल कभी नहीं करनी चाहिये । क्योंकि इन नियमों के सर्वागिण पालन करने में कितने ही महानियम उपयोगी मालम नहीं होते । वे सब श्री संघ का काम करते वक्त ध्यान में लेना जरूरी होता है । इसलिए लिखा हो उतने ही नियम मान्य या स्वीकार्य हैं, ऐसा कभी नहीं समझना चाहिए। कोर्ट न्यायालय में ऐसी स्वीकृति न हो जावे इसलिए पूरा ध्यान रखना चाहिए कि नियम सिर्फ सामान्य रूपरेखा मात्र है, काम चलाने की सहुलियत के लिए हैं। इसके अतिरिक्त हमारे सकल श्री संघ शास्त्रों और मुनि महाराजों की आज्ञा से फलित होते नियम बहुत से हैं । यह सब स्वीकार करने, मानने के लिए हम (स्थानीय सघ) बंधे हुए हैं । १८] आज इस तरह जैन शासन को मर्खादा के विरूद्ध वैधानिक नियमों या कायदों का निर्माण होता है वह न्यायानुकूल नहीं है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64