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श्री जैन शासन संस्था
इस भांति शासन के अंग के रूप में बतलाये हुए पांचों की साक्षेप आराधना वास्तव में जैन धर्म की आराधना है। किसी एक का भी अहित होने पर परिणाम में सबको हानि होती है । परम्परा से धर्म को धक्का लगता है। २०. साधक-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का स्वरूपःद्रव्य-आराधक आत्माएं, एवं आराधनोपयोगी उपकरण आदि । क्षेत्र-आराधना में उपयोगी श्री शत्रुजयादि तीर्थ, देवालय (चैत्य)
पौषधशालाएं आदि । काल-आराधना के अनुकूल, दूज, पंचमी, अष्टमी, चौदस, पर्युषण
महापर्व, कल्याणक तिथियां आदि । भाव-आराधना की विशिष्टता को बढ़ाने वाले आराधक भाव के
पोषक क्षमादि धर्म, पंचाचार, रत्नत्रयो, मार्गानुसारी अपुनबँधकादि सामग्री।
यह चार धर्म की आराधना में प्रबल निमित्त भूत हैं, और इन निमित्तों से आराधक आत्माएं धर्म की आराधना अच्छी तरह कर सकती हैं।
इस तरह शासन संस्था के बहुत विषय हैं । जो कि परंपरा से, गुरुमुख से, शास्त्रों से तथा सूक्ष्म अध्ययन से समझने योग्य हैं। गवेषणात्मक रीति से इस सम्बन्ध में गहन अध्ययन करने से बहुत जानकारी मिल सकती है। २१. शासन के प्रतिकूल तत्व :(अ) इन सबको उलटने के लिये आज चुनाव और बहुमतवाद है,
क्योंकि वर्तमान पब्लिक या धार्मिक ट्रस्ट एक्टों से मुख्य रूप से धर्माराधना में प्रबल निमित्त, साधक, द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव,
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