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श्री जैन शासन संस्था
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शासन अथवा सकल जैन शासन या संघ सम्बन्धों की रक्षा आदि का समावेश होता है।
६. स्थानिक संघ के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य, जैन धर्म की आराधना के साथ जैन शासन और संघ के हितों को रक्षा, सेवा और गौरव की रक्षा सर्वस्व समर्पण करके भी करने का है। परंतु जहां तक हो सके वहां तक स्थानिक सकल संघ की सहानुभूति, अनुशासन, परंपरागत सांस्कृतिक पद्धति, शास्त्रादि की आज्ञानुसार सकल संघ की तरफ से करना चाहिये।
७. प्रत्येक गांव में संघपति और आवश्यकतानुसार उसके सहायक होने चाहिये जो धर्माचार्य के स्थानीय प्रतिनिधि होते हैं। उनकी उचित आज्ञा में सबको रहना चाहिये । वह स्थानीय संघ को बुलावे या न बुलावे परन्तु उसको आज्ञा सबको मान्य करनी चाहिये फिर भी उसको शासन, शास्त्र, संघ, देवगुरु की आज्ञा और सिद्धांत या उसके हितों के विरुद्ध कुछ भी करने का अधिकार नहीं हैं। इस भांति उस गांव या शहर के स्थानीय संघ को शासन की मूल मर्यादा देव गुरु को आज्ञा के विरुद्ध कुछ भी करने का अधिकार नहीं है । क्योंकि अहिंसक संस्कृति के सब कायों में आज्ञा ओर उसके अनुकूल हित, यह दो मुख्य वस्तु प्रधान हैं और इनका भी उपयोग धर्म साधक द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को ध्यान में रख के करना होता है न कि धर्म के बाधक या साधकाभास द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार । यह बात स्पष्ट रीति से समझने जैसी है।
८. विशेष महत्व के प्रसंग पर खुद को सलाह, सूचना, मार्गदर्शन सहायता लेने की या विचारणा करने की जरुरत मालूम पड़े तो श्री संघ के अग्रगण्य व्यक्तियों को या आवश्यकता पड़ने पर
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