Book Title: Jain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Author(s): Shankarlal Munot
Publisher: Shankarlal Munot

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Page 15
________________ श्री जैन शासन संस्था शासन के अधिकार और श्री संघ की कार्यवाही से सम्बन्ध रखने वाले अधिकारों का शास्त्रों में वर्णन मिलता है। भिन्न २ आचार के कल्पों में धर्माराधन के अतिरिक्त ऐसे नियम भी होते हैं। इन सबका समावेश दर्शनाचार में होता है। १८. श्री संघ की कार्यपद्धति के आधार तत्व : श्री संघ की कार्य पद्धति (कार्य प्रणाली) पूर्वाचार्यों द्वारा किये निर्णयों आदि के आधार पर होती है। आगम, श्रुत, धारणा जीत और आचार यह पांच व्यवहार, बंधारणीय नियम और श्रीसंघ को संचालन पद्धति से सम्बन्धित मुख्य वस्तु है। धर्माराधना भिन्न वस्तु है, शासन संघ के नियम भिन्न हैं। शास्त्राज्ञा एवं तत्वज्ञान भिन्न वस्तु हैं । सम्पत्ति की प्राप्ति तथा उपयोग तथा रक्षण सम्बंधी नियम भिन्न हैं तो भी पांचो व्यवहारों से परस्पर सम्बन्धित हैं। पांचों आचार और उनके अन्तर्गत आचारों को विस्तृत जानकारी (ज्ञान) के साथ २ उनसे सम्बन्धित अनाचारों, अपराधों एवं अतिचारों के प्रायश्चित आदि शास्त्रों में विस्तार से बतलाये १९. शासन याने : अ. शाश्वत धर्म, रत्नत्रयो ज्ञान, दर्शन, चारित्र] आ. शासन, वीतराग, आज्ञा । इ. संघ, श्रमण प्रधान चविध श्री संघ । ई. शास्त्र, द्वादशांगी अर्थात् पंचागी सहित आगम । उ. संपत्ति, पांच द्रध्य उपलक्षण से साधक द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव । यह पांच शासन शब्द से जानना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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