Book Title: Jain Shasan 2001 2002 Book 14 Ank 01 to 18
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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- સભ્ય જ્ઞાનની સર્વ શ્રેષ્ઠતા
श्रीहीन शासन.(हवा)*वर्ष १४* s 13/१४ *ता. २९-११-२००१ અસઝાય બનાવીને સમ્યકત્વના ૬૭ બોલની હતી. | બનાવી શકે છે. અપૂર્ણન પૂર્ણ બનાવે છે. મામુ પીને મહાન
આવા તો એક નહિ પણ ઢગલાબંધ મહામુનિઓ - | બનાવે છે. ભયંકર ક્રોધીને સમતાનો મહાસાગર બનાવે છે. પૂજ્ય આચાર્ય ભગવંતો આ શાસનમાં થયા છે. જેઓએ જીવનમાં ચાલતી જ્ઞાનની આશાતના દ ર કરવાની પતાનું આત્મ કલ્યાણ કર્યું છે. શાસનનાં મહાન કાર્યો કર્યા મહેનત કરનાર ભવિષ્યમાં શ્રી હેમચન્દ્રાર ર્ય કે શ્રી छ भनेमात्मामोने तपस्वी-शानी - जिनमत - યશોવિજ્યજી મહારાજા જેવો બની શકે છે. અને મોક્ષના દHવીર - ઉદાર - ગુણવાન બનાવ્યા છે. શ્રી જિનશાસન દ્વાર સુધી પહોંચી શકે છે. નાની નાની ભૂલો ૬ વનમાંથી વંતુ રાખ્યું છે.
દૂર કરવા પ્રયત્નશીલ બનીએ. 1 સમ્યજ્ઞાન કિમતી વસ્તુ છે જેઅજ્ઞાનીનકેવળજ્ઞાની
॥नारलाई शत्रुजयमंडन श्रीआदिनाथाय नमः॥ ॥ श्री प्रेमरामचन्द्रसूरीश्वरेभ्यो नमः॥
__ श्री नारलाई शत्रुजय (राणकपुर पंचतीर्थी) मध्ये परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजयकमल रत्नसूरीश्वरजी म. सा. की शुभनिश्रा में सर्वप्रथम नवाणुं यात्रा के लिये संघ को सादर आमंत्रण.
शुभाशिषः प.पू. गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमविजयमहोदयसूरीश्वरजी म.,
_प. पू. मेवाडदेशोद्धारक आचार्यदेव श्रीमद् विजयजितेन्द्रसूरीश्वरजी म. विशेष जयजिनेन्द्र के साथ लिखते हुए अत्यानंद हो रहा है कि प. पू. मेवाडदेशोद्धारक आचार्यदेव श्री वि यजितेन्द्र सूरीश्वरजीम.सा. के शिष्यरत्न के शिष्यरत्नप.पू. वर्धमानतपोनिधि आचार्यदेव श्रीमद्विजय कमलरत्नसूरीश्वरजी म.सा., प.आचार्यदेव श्रीमद्विजयअजितरत्नसूरीश्वरजीम.सा.,प. पू.दानरत्न विजयजीम.,प. पू.खान्तिरत्नविजर जिीम., प. पू.दीपकरत्नविजयजी म. एवं प्रवर्तिनी साध्वीजीखान्तिश्रीजी की स्व. प.पू. सा. किरणप्रज्ञाश्रीजी म. की शिष्या प. पू. हर्षितप्रज्ञाश्रीजी, प.पू.लक्षितप्रज्ञाश्रीजी अपने विशाल परिवार की निश्रा- उपस्थितियहनवाणुंयात्रा का हमारामनोर धसफल हो रहा है इसका हमेखूब आनंद है। आपको सपरिवार इसनवाणुं यात्रा में पधारने का हार्दिक आमंत्रण है।
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जाARIRIRAINRIRAINERaiरनारारारारारारनामाRAINERIारारारारारारारारारनामामार
बीमारी नारी नारा
नवाणुशुभारंभ : मगसरसुदर दि. १६-१२-२००१, रविवार. नवाणुमालारोपण: पोषसुद२ दि. १५-१-२००२, मंगलवार.
नारलाईशत्रुजयकेमहिमा: नारलाईटेकरी के उपर श्रीआदीश्वर भगवानका मंदिर हैयह मंदिर श्रीयशो भद्रसूरिजी गोरमी ने उठाकर विक्रम संवत १०१०में लाया हैं। एकटेकरी पर नारलाई गिरनार तीर्थ हैं। गांव में कुल ११जिनमंदिर है। नारलाई गिरगार सहसावनसहित हैं। चढाव ज्यादा नहीं है। नारलाई शत्रुजयराणकपुर तीर्थसे ४५ किलोमीटर हैं। दिल्ली- 3 हमदाबाद (वेस्टर्न रेल्वे),फालनासे ४०कि.मी. है। बस आदिकी सुविधा है। [पत्र यवहारका पता:
:: लिखी:: Ki |संघवी परिवार, नारलाई (राजस्थान)
संघवी परिवार, नारलाई का | स्टेरानी, जिला : पाली मारवाड,
सबहुमान, जयजिनेन्द्रवंचनाजी. Ni2 नोंध पू.गुरुदेवश्रीसपरिवारदीक्षाआदिशासनप्रभावना करतेहुएमहासुद ४,दि. १६-१-२००२ को अहमदाबाद,
साबरमती प्रतिष्ठा पर पहुंचने की संभावना है। NAIAIAINIANAMA
ANIANRANI AAAAAA AAAAAA MMMMMIMIMIMIMIMIMI 1
नाना नाना