Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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प्राक्कथन
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५, लाक्षणिक साहित्य से सम्बन्धित है। इसके लेखक हैं पं. अंबालाल प्रे० शाह। भाप महमदाबादस्थित लालभाई 'दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में पिछले कई वर्षों से कार्य कर रहे हैं । प्रस्तुत भाग के लेखन में आपने यथेष्ट श्रम किया है तथा लाक्षणिक साहित्य के विविध अंगों पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। आपकी मातृभाषा गुजराती होने पर भी मेरे अनुरोध को स्वीकार कर मापने प्रस्तुत ग्रन्थ का हिन्दी में निर्माण किया है। ऐसी स्थिति में ग्रन्थ में भाषाविषयक सौष्ठव का निर्वाह पर्याप्त मात्रा में कदाचित् न हो पाया हो, यह स्वाभाविक है। वैसे सम्पादकों ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि ग्रन्थ के भाव एवं भाषा दोनों यथासम्भव अपने सही रूप में रहें।
इस भाग से पूर्व प्रकाशित चारों भागों का विद्वत्समाज और सामान्य पाठकवृन्द ने हार्दिक स्वागत किया है। आगमिक व्याख्याओं से सम्बन्धित तृतीय भाग उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा १५००) रु. के रवीन्द्र पुरस्कार से पुरस्कृत भी हुआ है। प्रस्तुत भाग भी विद्वानों व अन्य पाठकों को उसी प्रकार पसंद आएगा, ऐसा विश्वास है ।
ग्रन्थ-लेखक पं० अंबालाल प्रे० शाह का तथा सम्पादक पूज्य पं० दलसुखभाई का मैं अत्यन्त अनुगृहीत हूँ। ग्रंथ के मुद्रण के लिए संसार प्रेस का तथा प्रफ-संशोधन भादि के लिए संस्थान के शोध-सहायक पं. कपिलदेव गिरि का माभार मानता हूँ। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान ।
म शोध संस्थान । मोहनलाल मेहता वाराणसी-५ २९. १९. ६९
अध्यक्ष
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