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रावणका दिग्विजय।
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तुम देखोगी कि सपोंके साथ जैसे गरुड़ युद्ध करता है, वैसे ही मैं उनके साथ युद्ध करूँगा" इसतरह रावण कह रहा था कि इतनेहीमें, विद्याधर रावणके ऊपर ऐसे चढ़ आये, जैसे बड़े पर्वतपर बादल चढ़ आते हैं। शक्तिसे दारुण बने हुए रावणने अपने शस्त्रोंसे उनके सब शस्त्र काटदिये फिर उनको नहीं मारनेकी इच्छासे उसने प्रस्थापन नामक अस्त्र छोड़कर सबको मोहित कर दिया और नागपाश द्वारा जानवरोंकी तरह सबको बाँध लिया । यह देख खेचरकन्याओंने अपने पिताओंकी प्राण-भिक्षा माँगी । रावणने अपनी प्रियाओंकी प्रार्थना स्वीकार कर सबको छोड़ दिया। सब विद्याधर अपने नगरोंको चले गये । हर्षित मनुष्योंसे अर्घ ग्रहण करते हुए रावणने अनी प्रियाऑसहित स्वयंप्रभ नगरमें प्रवेश किया।
कुंभपुरके राजा ' महोदर' की स्त्री ' सुरूपनयना' के गर्भसे एक कन्या उत्पन्न हुई थी। उसका नाम 'सड़ि. न्माला ' था । विद्युन्मालाके समान कांतिवाली, पूर्णकुंभके समान स्तनवाली उस युवती तडिन्मालाके साथ कुंभकर्णका ब्याह हुआ था।
वैताब्य गिरिकी दक्षिणश्रेणीमें ज्योतिषपुर नामका नगर था। उसके राजा 'वीर' की पत्नी 'नंदवती' के गर्भसे एक कन्याका जन्म हुआ । उस पंकज-कमलकी शोभाको चुरानेवाली पंकजनयनी, देवांगनाके समान