Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 482
________________ राम चिन्तित भावसे सोचने लगे,-"शिरीष कुसुमके समान सुकोमल राजकुमारी सीता शीत और आतापके क्लेशको कैसे सहेगी ? यह कोमलांगी सारे भारोंसे भी. अधिक और हृदयसे भी दुवह संयमभारको कैसे सहेगी?" फिर उन्हें विचार आया,-"जिसके सती व्रतको रावण भी भग्न न कर सका, वह सती संयममें भी अपनी पतिज्ञाका अवश्यमेव निर्वाह कर सकेगी।" तत्पश्चात रामने. सीताको वंदना की । उसके बाद शुद्ध हृदयी लक्ष्मणने और अन्यान्य राजाओंने भी उनको वंदना की। फिर राम अपने परिवार सहित अयोध्यामें गये । सीताने और कृतान्तवदनने उग्र तप करना प्रारंभ किया। कृतान्तवदन तप करता हुआ मरा और ब्रह्मलोकमें देव हुआ। सीता साठ वर्ष पर्यन्त नाना भाँतिका तप कर, तेतीस दिन रात तक अनशन रह, मरी और अच्युतेन्द्र हुई। बाईस सागरोपमका आयुष्य हुआ। कनक राजाकी लड़कियोंके साथ लवणांकुशके लग्न । वैताब्य गिरिपर कांचनपुर नगर है। उसमें विद्याधरोंका राजा कनकरथ राज्य करता था । उसके मंदाकिनी और चंद्रमुखी नामा दो कन्याएँ थीं। उसने कन्याओंका स्वयंवर किया । उसमें रामलक्ष्मणादि बड़े बड़े राजाओंको उनके पुत्रों सहित बुलाया। सारे जा, जाकर स्वयंवर मंडपमें जमा हुए । मंदाकिनीने अनंगलवणको और चंद्रमुखीने

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