Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 480
________________ रामका निर्वाण । ४३७ 'बाँधा-निदान किया कि इस तपके फल स्वरूप में भी इस विद्याधरके समान समृद्धिवान होऊँ । वहाँसे मरकर वह 'तीसरे देवलोकमें देवता हुआ और वहाँसे चवकर हे विभीषण! वह तुह्मारा बड़ा भाई रावण हुआ और कनकमभकी समृद्धिको देखकर उसने निदान किया था इसलिए वह खेचरोंका स्वामी बना। धनदत्त और वसुदत्तके मित्र याज्ञवल्क्य ब्राह्मणका जीव भवभ्रमण करके विभीषण हुआ-तू हुआ । शंभुके मार डालनेपर श्रीभूतिका जीवं स्वर्गमें गया। वहाँसे चवकर, सुप्रतिष्ठापुरमें पुनर्वसु नामका विद्याधर हुआ। एकवार कामातुर होकर उसने पुंडरीक विजयमेंसे त्रिभुवनानंद नामा चक्रवर्तीकी कन्या अनंगसुंदरीका हरण किया। चक्रवर्तीने उसके पीछे विद्याधर भेजे । पुनर्वसु युद्ध करनेमें आकुल-व्याकुल-हो रहा था । अनंगसुंदरी उसके विमानमेंसे एक लतागृह पर गिर पड़ी । पुनर्वसुने उसकी प्राप्तिका निदानकर दीक्षा ली । वहाँसे मरकर वह देवलोंकमें गया और वहाँसे चवकर उसका जीव यह लक्ष्मण हुआ है। अनंगसुंदरी वनमें रहकर उग्र वप करने लगी। अंतमें उसने अनशन किया। अनशनमें उसको अनगर निगल गया । समाधिसे मरकर वह देवलोकमें देवी हुई । वहाँसे

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