Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 497
________________ ४५४ जैन रामायण दसवाँ सर्ग । AAN. ANNARAN साथ ले रामके पास गये और उनको कहने लगे:-" हे प्रिय ! मैं तुम्हारी प्रिया सीता तुम्हारे पास आई हूँ ।हे नाथ ! उस समय मैंने, अपने आपको दुखी समझकर दीक्षा लेली थी; और आपके समान. प्रेम करने वालेका परित्याग कर दिया था; परन्तु पीछेसे मुझको बहुत पश्चात्ताप हुआ। आज इन विद्याधर कुमारिकाओंने मेरे पास आकर कहा कि, तुम दीक्षा छोड़कर, पुनः रामकी पट्ट रानी बनो । तुम्हारी आज्ञासे हम भी समकी रानियाँ बनेंगी। इसलिए हे राम ! इन विद्याधर कन्याओंके साथ ब्याह करो। मैं भी पहिलेकी भाँति ही आपके साथ रमण करूँगी । मैंने आपका जो अपमान किया था, उसके लिए मुझको क्षमा कर दीजिए।" __ तत्पश्चात- सीतेन्द्रकी मायासे बनी हुई खेचर कुमारियाँ कामदेवको सजीवन करनेमें औषधके समान गीत गाने लगीं । मायावी सीताके वचनोंसे, विद्याधरियोंके संगीतसे और वसंत ऋतुसे राम जरासे भी विचलित नहीं हुए । इस लिए माघ मासकी शुक्ला द्वादशीको रात्रिके पिलछे पहरमें राम मुनिको केवलज्ञान उत्पन्न होगया सीतेन्द्रने और अन्यान्य देवताओंने विधि पूर्वक भक्ति सं हित केवलज्ञानमहोत्सव किया। फिर दिव्य स्वर्ण कमल पर बैठकर, दिव्य चामर और दिव्य छत्रसे सुशोभिद्र रामने धर्मदेशना दी।

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