Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 496
________________ रामका निर्वाण । ४५३ Vrivuuuuu खड़े हो भुजाएँ लंबीकर नासाग्र दृष्टि जमाके, किसीवार अंगूठेपर रहकर, और किसीवार एड़ीपर रहकर, इस तरह राम नाना भाँतिके आसनोंद्वारा ध्यानकरने लगे; दुस्तप तपस्या करने लगे। रामको सीतेन्द्रका उपसर्ग करना; रामको केवलज्ञान होना। एकवार राम मुनि विहार करते हुए कोटिशिला नामा शिलापर पहुँचे । यह वही शिला थी जिसको लक्ष्मणने विद्याधरोंके सामने उठाया था। राम उसी शिलापर प्रतिमा धारणकर, क्षपक श्रेणीका आश्रय ले, शुक्लध्यानान्तरको प्राप्त हुए । रामकी इस प्रकारकी स्थिति इन्द्र बने हुए सीताके जीवने, अवधिज्ञान द्वारा देखकर, सोचा:- "यदि राम पुनःभवी-गृहस्थी-हो जायँ तो मैं इनके साथ रहूँ। इसलिए मुझे जाकर अनुकूल उपसर्गों द्वारा रामको क्षपक श्रेणीसे, च्युत करना चाहिए । क्षपक श्रेणीसे च्युत होकर परनेपर राम मेरे मित्र रूप देव होंगे।" ऐसा सोचकर सीतेन्द्र रामके पास आये। वहाँ उन्होंने वसंत विपरित एक बहुत बड़ा उद्यान बनाया। उसमें कोकिलाएँ कूजने लगी; मलयानिल बहने लगा। पुष्पोंकी सुगंधसे हर्षित और मस्त हो भ्रमर गूंजने लगे और आम्र, चंपक, कंकिल, गुलाब, और बोरसलीके वृक्षोंने कामदेवके नवीन अस्त्ररूप शुष्प धारण किये। तत्पश्चात सीतेन्द्र सीताका रूप बना, अन्यान्य स्त्रियोंको

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