Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 489
________________ ४४६ जैन रामायण दसवाँ सर्ग | देते थे; और किसी बार आप संवाहक - तैळ मलनेवाले न उनके शरीरपर तैल मलते थे । इस प्रकार स्नेहमें उन्मत्त हो, वे सारा कार्य भूल गये । इसी स्थिति में उन्मत्तताकी बात सुनकर, इन्द्रजीतके, और सुंद राक्षसके पुत्र व अन्यान्य खेचर रामको मारने की इच्छासे उनके पास आये । छली शिकारी जिस गुफामें सिंह सोता होता है, उसको आकर घेर लेते हैं, वैसे ही जिस अयोध्या में उन्मत्त राम रहे हुए थे उसको उन लोगोंने बहुत बड़ी सेनासे आकर घेर लिया। यह देख रामने लक्ष्मणको गोदमें लेकर उस वज्रावर्त धनुषकी टंकारकी जो अकालमें भी संवर्त - प्रलयकालका- प्रवर्त करा देने 1 वाला था । उस समय महेंद्र देवलोक के देव जटायुके जीवका आसन कम्पित हुआ। वह देवताओंको साथ लेकर, अयोध्या में आया । उन्हें देख, इन्द्रजीत के पुत्रादि यह सोचकर, वहाँसें भाग गये कि देवता अब भी रामके पक्षमें हैं । तत्पश्चात वे यह सोचकर, संसारसे उदास होगये कि देवता अब भी रामका पक्ष लेते हैं; उनको मारनेवाला विभीषण अब भी रामके पास है । भय और लज्जासे उनके हृदयमें वैराग्य उत्पन्न होना। उन्होंने गृहवास छोड़ जाकर अतिवेग नामा मुनिके पास से दीक्षा लेली । "

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