Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 488
________________ रामका निर्वाण | हैं वैसे ही धीरोंमें धीर भी हैं । इसलिए लज्जोत्पादक अधैर्यका परित्याग कीजिए। अब तो लोकप्रसिद्ध और समयोचित लक्ष्मणका और्ध्वदेहिकं कृत्य अंग संस्कार पूर्वेक कीजिए । " ४४५ उनके ऐसे वचन सुन क्रोध से रामके होठ फड़कने लगे । वे बोले:-- “ रे दुर्जनो ! मेरा भ्राता लक्ष्मण तो अभीतक जीवित है, तो भी तुम ऐसी बातें कैसे कह रहे हो ? बन्धु सहित तुम सबका अग्निदाह पूर्वक मृत कार्य करना चाहिए । यह मेरा भाई तो दीर्घायुषी है । हे भाई! हे वस्स ! हे लक्ष्मण ! अब तो शीघ्र बोलो। तुम्हारे नहीं बोलनेसे ये दुर्जन प्रवेश करते हैं । बहुत देर से मुझे क्यों दुखी कर रहे हो ? हे भाई ! इन दुर्जनों के सामने तुमको कोप करना उचित नहीं है । " इस प्रकार कह, लक्ष्मणको कंधेपर उठा, राम वहाँसे दूसरी जगह गये | किसी वार वे लक्ष्मणको स्नानागरमें ले "जाकर, स्नान करवाते थे और उनके शरीर पर चंदनका लेप करते थे; किसी वार दिव्य भोजन मँगवा, भोजन से पात्रोंको भर लक्ष्मणके शव के आगे रखते थे; किसी बार उसको अपनी गोद में लिटा कर बार बार उसका मुख चूमते थे; किसी वक्त शैया पर सुलाकर वस्त्र ओढाते थे; किसी बार उनको पुकारते थे और फिर आप ही उसका उत्तर १ - प्रेत देहके लिए किया गया कर्म ।

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