Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 490
________________ रामका निर्वाण । ४४७ anMAA ..... .... A v w10 ___ रामका प्रबुद्ध होना। जटायु देव रामके पास आया और उनको बोध देनेके लिए मूखे हुए वृक्षमें बार बार जल सिंचन करने लगा, पत्थरपर खाद डालकर, उसपर कमल बोने लगा, जमीनमें असमयमें ही बीज बोना प्रारंभ किया; और घानीमें बालुरेत डालकर उसमेंसे तैल निकालना चाहा । इस प्रकार वह सारे असाध्य कायस्को, रामके सामने, साध्य करनेकी कोशिश करने लगा। यह देखकर राम बोले:-" रे मुग्ध ! सूखे हुए वृक्षों क्यों वृथा जल सिंचन कर रहा है ? इसमें फल फलना. अतिदूरकी बात है, क्योंकि मूसलमें कभी फल नहीं आते हैं। रे मूर्ख ! पाषाण पर कमल कैसे रोप रहा है ? निर्जल प्रदेशमें, मरे हुए बैलसे, बीज कैसे बो रहा है? और रेतीमेंसे आजतक किसीने तैल निकलते नहीं देखा है तू उसमेंसे तैल निकालनेका वृथा प्रयास कैसे कर रहा है ? उपायको नहीं जाननेवाले रे मुग्ध ! तेरा सारा प्रयत्न वृथा है।" ___ रामके वचन सुनकर जटायु देव हँसा और बोला:" हे भद्र ! यदि तू इतना समझता है, तो फिर अज्ञानताके चिन्ह रूप इस मुर्देको स्वास्ठायाहुए तूपयों फिरता है ?" 1 2 3 10E

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