Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 487
________________ ४४४ जैन रामायण दसवाँ सर्ग। घरमें और प्रत्येक मार्गमें सर्व रसहर्ता अद्वैत शोकका साम्राज्य छा गया। । उस समय लवण और अंकुश रामके पास आये । और नमस्कार करके बोले:-" हमारे इन लघु पिताकी मृत्युसे संसारसे हम अत्यंत भयभीत हुए हैं । मृत्यु सबहीको अकस्मात आ दबाती है। अतः सबको पहिलेहीसे परलोकके लिए तैयारी कर रखना चाहिए । इसलिए हे पिताजी ! हमें आप दीक्षा ग्रहण करनेकी आज्ञा दीजिए। लघु पिता विना हमारा घरमें रहना सर्वथा अयुक्त है।" फिर रामको नमस्कार कर, लवण और अंकुशने अमृतघोष मुनिके पाससे दीक्षा लेली। तपकर दोनों मोक्षमें गये। रामका कष्ट वर्णन । ___ भाईकी मृत्युसे और पुत्रोंके वियोगसे, राम बार बार मूञ्छित होने लगे और मोहसे शोकाकुल होकर, कहने लगे:--" हे बन्धु ! अभी तो मैंने तेरा कुछ भी अपमान नहीं किया है। फिर तू मौन धारकर, कैसे बैठा है ? हे भ्राता, तेरे मौनावलम्बी होनेसे मेरे पुत्र भी मुझको छोड़कर, चले गये । छिद्र देखकर, मनुष्योंके शरीरमें सैकड़ों भूत घुस जाते हैं।" इस प्रकार उन्मत्तके समान रामको बोलते हुए देख, विभीषणादि एकत्रित होकर उनके पास गये और गद्गद कंठ हो कहने लगे:--" हे प्रभो ! आप जैसे वीरोंमें वीर

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