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रावण वध ।
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उसी समय आकाशमंडलको प्रकाशित करती हुई बहु रूपिणी विद्या प्रकट हुई । विद्या बोली:-" हे रावण, मैं तुझे सिद्ध हुई हूँ। बता मैं क्या कार्य करूँ ? मैं सारे संसारको तेरे आधीन कर सकती हूँ । फिर राम और लक्ष्मण तो हैं ही कौन चीज ?"
रावणने कहा:-“हे विद्या! यह ठीक है कि, तेरे लिए सब कुछ साध्य है; परन्तु इस समय मुझको तेरी आवश्यकता नहीं है । इस समय तू जा । जिस समय तुझे बुलाऊँ तब आना।" रावणकी बात सुनकर विद्या अन्तधान होगई । सारे वानर भी पवनकी तरह उड़कर अपनी छाम्नीमें चले गये।
रावणका वध। रावणने मंदोदरीकी दुर्दशाका हाल सुना। उसने कोषसे दाँत पीसे । फिर स्नान भोजनसे निवृत्त होकर वह देवरमण उद्यानमें सीताके पास गया और बोला:-" हे सुन्दरी ! मैं बहुत दिनोंतक तुझसे अनुनय विनय करता रहा; परन्तु तूने उपेक्षा की । अब मैं नियमभंगका भय छोड़, राम और लक्ष्मणको मार, तेरे साथ जबर्दस्तीसे क्रीडा करूँगा।"
रावणकी विषमय बातें सुन, रावणकी आशाकी तरह ही जानकी मूञ्छित होकर भूमिपर गिर गई। थोड़ी वारमें