Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 459
________________ सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण। ४१५ .............................................नहीं है; परन्तु अब युद्धको छोड़कर, हम किसलिए उनको लज्जित करें ? इधर इनके ऐसी बातें हो रही थीं; उधर रामकी और उनकी सेनामें प्रलयकालके मेघके तुल्य युद्ध प्रारंभ हुआ। इसलिए भामंडल इस आशंकासे युद्धमें आये कि, कहीं सुग्रीवादि खेचर इस भूचारी सेनाको न मार डालें। तत्पश्चात अतिशय रोमांचके कारण जिनके कवच भी उच्छसित हो उठे थे ऐसे वे महा पराक्रमी कुमार युद्ध करनेके लिए तैयार हुए । निःशंक होकर युद्ध करते हुए सुग्रीवादिने युद्ध में सामने भामंडलको, देखकर, उससे 'पूछा:-" ये दोनों कुमार कौन हैं ?" भामंडलने उत्तर दिया:-" ये रामके पुत्र हैं । " यह जान, सुग्रीवादि खेचर तत्काल ही सीताके पास आये और प्रणाम करके उनके सामने भूमिपर बैठ गये। __ प्रलयकालके समुद्रकी भाँति उद्भांत बने हुए दुर्द्धर और महापराक्रमी लवण और अंकुशने क्षणवारमें रामकी सेनाको भग्न कर दिया । वनके सिंहकी भाँति जिधर वे गये उधर ही रथी, घोड़ेसवार या हस्ति-सवार कोई भी आयुध हाथमें लेकर उनके सामने खड़ा न रह सका। इस भाँति रामकी सेनाको छिन्नविच्छिन्न करते हुए, अस्खलित गतिवाले वे वीर राम, लक्ष्मणके सामने युद्ध

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