________________ सर्ग दसवाँ। - रामका निर्वाण / रामका जयभूषण मुनिके पास जाना। राम चंदनजलसे सिंचित किये गये / उनकी मूर्छा भंग हुई / वे स्वस्थ होकर बोले:-" मनस्विनी सीता कहाँ है ? हे भूचरो ! हे खेचरो ! यदि तुम मरना नहीं चाहते हो बो, मेरी सीता मुझे बताओ। उसने लोच करलिया तो कोई हानि नहीं है / हे वत्स लक्ष्मण ! मुझे तत्काल ही धनुषबाण दो। मैं इतना दुखी हो रहा हूँ तो भी ये सब उदासीन और स्वस्थ कैसे हो रहे हैं ?" इतना कह राम अपना धनुषबाण उठाने लगे / लक्ष्मण बोले:-" हे आर्य ! आप यह क्या कर रहे हैं ? ये सारे तो आपके सेवक हैं। न्यायके लिए दोषके भयसे आपने. जैसे सीताका त्याग किया था, वैसे ही स्वार्थके लिएआत्महितके लिए-सीताने हम सबको छोड़ दिया है। आपकी प्रिया सीताने लोच आपके सामने ही किया था। .यहाँसे जाकर उन्होंने जयभूषण मुनिके पाससे दीक्षा लेली है / इन महर्षिको इसी समय केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है। उनका ज्ञानमहोत्सव करना हमारा भी कर्तव्य है।