Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 472
________________ सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण। ४२७ www.. ... लगे:-" हे महासती सीता! हे देवी ! हमें बचाओ! हमारी रक्षा करो!" सीताने उस ऊँचे उठते हुए जलको अपने दोनों हाथोंसे दबाया। इससे जल वापिस पूर्ववत होगया । उस सरोवरकी शोभा बहुत ही मनोहर थी । उसमें उत्पल, कुमुद और पुंडरीक जातिके कमल खिल रहे थे। कमलोंकी सुगंधिसे उद्धांत होकर भँवर उसमें संगीत कर रहे थे। उसके चहुँ और मणिमय पाषाणोंसे बँधे हुए घाट सुशोभित हो रहे थे। निर्मल जलकी तरंगें घाटोंपर आ आकर टकराने लग रही थीं। ___ सीताके शीलकी प्रशंसा करते हुए नारदादि आकाश में नृत्य करने लगे। संतुष्ट देवताओंने सीता पर पुष्पवृष्टि की। ' अहो ! रामकी पत्नी सीताका शील कैसा यशस्वी है ? " इस घोषणासे पृथ्वी और आकाश मंडल भरगये। अपनी माताके प्रभावको देखकर लवण और अंकुश बहुत ही इर्षित हुए। वे हंसकी भाँति तैरते हुए उनके पास गये । सीताने उनको, मस्तक सूंघकर, अपने दोनों तरफ बिठाया। वे दोनों कुमार, नदीके दो किनारोंपर रहे हुए हाथीके बच्चोंकी तरह सुशोभित होने लगे। सीताका दीक्षाग्रहण। उस समय, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, भामंडल, विभीषण, और सुग्रीव आदि वीरोंने आकर भक्ति पूर्वक सीताको नमस्कार किया। तत्पश्चात अति मनोहर कान्तिवाले राम भी सीता

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