Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 464
________________ राम मूञ्छित हो गये । उनपर चंदनका जल सिंचित किया गया । उससे उनको चेत हुआ। पुत्रवात्सल्य-परिपूर्ण हृदयी राम साश्रुनयन हो लक्ष्मणको साथ ले, लवण और अंकुशसे मिलने चले । उनको आते देख, विजयी लवण और अंकुश शस्त्रास्त्रोंका परित्याग कर, रथसे उतर सामने जा, क्रमशः रामलक्ष्मणके चरणों में पड़े । उनको उठा, हृदयसे लगा, गोदमें बिठा रामने उनके मस्तकको चूमा। फिर शोक और स्नेहसे आकुल होकर राम उच्च स्वरसे रुदन करने लगे । रामकी गोदमेंसे लक्ष्मणने उनको अपनी गोदमें ले लिया और सीनेसे लगा साश्रुनयन उनके मस्तकको चूमा। पिताके तुल्य ही शत्रुघ्नको समझ उन्होंने इनके चरणों में साष्टांग नमस्कार किया ! शत्रुघ्नने भी उन विनीत पुत्रोंको उठाकर, आलिंगन दिया। दोनों ओरके अन्यान्य राजा उस जगह एकत्रित होगये और इस अपूर्व मिलन-आनंदको देखकर हर्षित होने लगे। शुद्धिके लिए सीताका अग्निमें प्रवेश करना। सीता अपने पुत्रोंका पराक्रम और उनके पिताके साथ उनका मिलन देख, हर्षित हो, वहाँसे विमानमें बैठकर पुण्डरीकपुर चली गई । अपने ही समान बली पुत्रोंको प्राप्त कर, रामलक्ष्मण बहुत हर्षित हुए । सारे भूचर और खेचर भी प्रसन्न हुए। भामंडल ने वज्रजंघकी पहिचान करवाई । इसने चिरकालके सेवककी तरह रामलक्ष्मणको प्रणाम किया।

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